आस्था, अंधविश्वास है या साइंस? इमोशनल ड्रामा है 'गुडबाय'

Goodbye Review

By Nishita Sahoo

'गुडबाय' सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है. फिल्म आपको एक इमोशनल राइड पर लेकर जाती है 

 जहां आप कभी हंसते हैं, तो कभी आपके आंसू रुकने का नाम ही नहीं लेते हैं| 

क्रिटिक के नजरिए से बेशक फिल्म में कुछ कमियां जरूर हैं, पर कहानी इतनी अपनी सी लगती है कि उन कमियों को नजरअंदाज कर जाते हैं.

हमारे समाज में किसी भी पर्व-त्यौहार, शादी या अंतिम संस्कार को लेकर तमाम तरह के रीति रिवाज बनाए गए हैं 

अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम उन रीति-रिवाजों को मानकर समझें या समझकर मानें 

आस्था के पीछे कई बार साइंस व लॉजिक लगाने की कोशिश की जाती रही है, साइंस और कस्टम के बीच की इसी आपसी मतभेद की कहानी है गुडबाय 

गुडबाय महज फैमिली ड्रामा फिल्म नहीं है, बल्कि यहां अपने रीति-रिवाजों के प्रति हमारी सोच व धारणाओं की भी बात है 

वैसे तो हम अपनी जिंदगी में बहुत सी प्लानिंग करते रहते हैं. पर क्या कभी इस बात की प्लानिंग की है 

कि मरने के बाद हमारा अंतिम संस्कार किस तरह का होगा? किसी की मौत के बाद उसके तमाम करीबी उस इंसान से जुड़ीं पसंदीदा चीजों का जतन कर अंतिम संस्कार की 

तैयारी करते हैं, लेकिन अगर पहले से ही अंतिम संस्कार की प्लानिंग हो, तो कितना अलग होगा न 

फिल्म गुडबाय देखने के बाद आपके जेहन में भी यह ख्याल जरूर आता है