अलंकार किसे कहते हैं – परिभाषा और अलंकार के भेद

Alankar kise kahate hain

Alankar kise kahate hain : हैल्लो दोस्तों, हिंदी बाराखड़ी डॉट कॉम पे आपका स्वागत है। आज हम भाषा के सबसे प्रख्यात व्याकरण के टॉपिक के बारेमे बात करने वाले है। जिसे अलंकार कहा जाता है। कॉम्पिटिटिव एग्जाम में बहुत जरुरी व्याकरण का पॉइंट है। और कठिन भी ज्यादा है। इसलिए अच्छे से समजे।

alankar kise kahate hain
alankar kise kahate hain

अलंकार किसे कहते हैं

अलंकार की परिभाषा : अलंकार का समानर्थी शब्द आभूषण होता है। जिसे हम गहना कहते हैं। जिस तरह आभूषण पहनने से हमारी सुंदरता बढ़ती है उसी तरह अलंकार से कविता यानि काव्य रचना की सुंदरता बढ़ती है।

हिन्दी भाषा के साहित्य का पूर्ण आनंद लेने के लिए अलंकारों का ज्ञान होना जरुरी है। कवियों के द्वारा लिखी गई कविताओं को अलंकार से शोभित किया गया होता है उन्हें समझने के लिए आपके पास अलंकारों का ज्ञान होना आवश्यक है। तभी जाके आप कविता के अर्थ को समज सकते है।

मतलब की आप समज गए होंगे की कविता की रचना और कविता में सुंदरता बढ़ाने वाले अवयवों जिन्हे अलंकार कहा जाता है। तो चलो अब अलंकार के भेद यानी प्रकार के बारेमे जानते हैं।

अलंकार के भेद या प्रकार

अलंकार को मुख्य दो प्रकारो में विभाजित किया गया है।

  1. शब्दालंकार
  2. अर्थालंकार

अर्थालंकार– जब काव्य में शब्दों के प्रयोग से अर्थ में चमत्कार उत्पन्न किया जाता है। वहां अर्थालंकार का प्रयोग किया गया होता हैं।

शब्दालंकार

जहां काव्य में शब्दों के चातुर्यपूर्ण प्रयोग से चमत्कार उत्पन्न किया जाता है। परन्तु अर्थ सामान्य ही रहता है, वहां शब्दालंकार का प्रयोग किया गया होता है।

शब्दालंकार के भी 5 प्रकार यानि भेद होते हैं जो निचे मुजब है। जिसमे से पहले 3 मुख्य है।

(1) अनुप्रास (2) यमक (3) श्लेष (4) वक्रोक्ति (5) वीप्सा

अनुप्रास अलंकार

जहां पर वर्णों की आवृत्ति हो मतलब की एक ही अक्षर बार-बारआता हो। वहां अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया हुआ होता है।

जैसे की – महेश माया में मोया,

ऊपर दिए गए वाक्य में म का बार बार प्रयोग हुआ है मतलब की ऊपर गए गए उदाहरण में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है। जब आप कविता पढ़ते होंगे तो ऐसे बोहत सारे उदाहरण आपको मिल जायँगे।

अनुप्रास अलंकार के भेद

शब्दों के प्रयोग के आधार पर अनुप्रास अलंकार के तीन भेद यानि प्रकार होते हैं।

छेकानुप्रास- जहां स्वरूप और क्रम के अनुसार कई व्यंजनों की एक बार आवृति हो। अर्थात अक्षरों का रूप या स्थिति और क्रम एक जैसा ही हो। वहां छेकानुप्रास होता है।

जैसे की – बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।

यहां पद और पदुम में पद शब्द की आवृत्ति (स्वरूप की आवृत्ति) है। पद में प के बाद द पदुम में प के बाद द और सुरुचि में स के बाद र और सरस में स के बाद र की आवृत्ति (क्रम की आवृत्ति) है।

वृत्यानुप्रास– जब कई व्यंजनों की कई बार स्वरूप और क्रमवार आवृति हो, तो वहां व्रत्यानुप्रास अलंकार होता है।

जैसे की -विराजमाना वन एक ओर थी कलामयी केलिवती कलिंदजा।

यहां क और ल की अनेक बार स्वरूपतः और क्रमतः आवृत्ति के कारण व्रत्यानुप्रास अलंकार है।

लाटानुप्रास– जहां एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो, किंतु तात्पर्य में कुछ भेद हो। वहां लाटानुप्रास अलंकार होता है।

जैसे की – पंकज तो पंकज, मृगांक भी है, मृगांक री प्यारी।

यहां पहले पंकज का साधारण अर्थ है कमल। दूसरे पंकज का अर्थ भी कमल है लेकिन कीचड़ से उत्पन्न हुआ कमल। इस प्रकार अर्थ में कुछ भेद हुआ। इसी प्रकार प्रथम मृगांक का अर्थ है चंद्रमा। दूसरे मृगांक का अर्थ हुआ कलंकयुक्त चंद्रमा। इस प्रकार अर्थ तो वही है परंतु अन्वय में भेद है।

यमक अलंकार

जहां एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आये। लेकिन हर बार अर्थ अलग अलग हों। वहां यमक अलंकार होता है। उदाहरण–

जैसे की – कनक कनक से सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय नर, या पाए बौराय।।

यहां पे कनक शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। पहले कनक का अर्थ धतूरा और दूसरे कनक का अर्थ सोना है।

श्लेष अलंकार

जहाँ शब्द का प्रयोग तो एक बार ही हुआ हो। लेकिन उसके कई अर्थ हों। वहां श्लेष अलंकार होता है। जैसे-

जैसे – रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी बिना न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।

यहां पानी शब्द का प्रयोग तो एक बार हुआ है। परंतु इसके तीन अर्थ हैं। मोती के संदर्भ में पानी का अर्थ- चमक है। मानुष के संदर्भ में- प्रतिष्ठा और चून के संदर्भ में पानी अर्थ है।

वक्रोक्ति अलंकार

हिन्दी भाषा में अलंकार के अंतर्गत अगला अलंकार है वक्रोक्ति अलंकार. जहां प्रत्यक्ष दिख रहे अर्थ की बजाय दूसरा अर्थ ग्रहण किया जाय। टेढ़ा कथन हो। वहां वक्रोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण-

एक कबूतर देख हाथ में, पूछा कहाँ अपर है।
उसने कहा अपर कैसा, वह उड़ गया सपर है।।

यहां जहांगीर ने दूसरे कबूतर के बारे में पूछने के लिए अपर (दूसरा) शब्द का प्रयोग किया है। जवाब में नूरजहां ने अपर का अर्थ बिना पंख का लगा कर उत्तर दिया है।

वीप्सा अलंकार

जहां मनोभावों को प्रकट करने के लिए शब्दों की आवृत्ति होती है। वहां वीप्सा अलंकार का प्रयोग हुआ होता है।

जैसे की – हाय हाय, हा हा, छि छि, राम राम, धिक धिक वगेरा।

अर्थालंकार

परिभाषा : जहां काव्य में अर्थ में चमत्कार उत्पन्न किया जाता है। वहां अर्थालंकार का उपयोग हुआ होता है।

अर्थालंकार के भेद

वैसे तो अर्थालंकार के सौ से भी अधिक भेद हैं। किंतु हम यहां मुख्य और अधिक प्रयोग होने वाले अलंकारों के बारे में ही जानेंगे।

  • उपमा अलंकार
  • प्रतीप अलंकार
  • संदेह अलंकार
  • उत्प्रेक्षा अलंकार
  • रूपक अलंकार
  • अतिश्योक्ति अलंकार
  • उल्लेख अलंकार
  • भ्रांतिमान अलंकार
  • द्रश्टान्त अलंकार
  • व्यतिरेक अलंकार
  • अन्योक्ति अलंकार

उपमा अलंकार

जब स्वभाव, शोभा, गुण, समान धर्म के आधार पर एक वस्तु की दूसरी वस्तु से तुलना की जाती है। वहां उपमा अलंकार का उपयोग हुआ होता है। उपमा अलंकार के चार भेद हैं।

उपमेय : जिसकी उपमा दी जाय या जिसकी तुलना की जाय। उसे उपमेय अलंकार कहते हैं।

उपमान : जिससे उपमा दी जाय या जिससे तुलना की जाय। उसे उपमान अलंकार कहते है।

वाचक : जिस शब्द से उपमा या तुलना प्रकट की जाय। उसे वाचक शब्द कहा जाता है। जैसे-समान, जैसे, ज्यों, तरह सदृश, सरिस वगेरा

समान धर्म : जिस गुण की उपमा दी जाय या दोनों के जिस गुण की तुलना की जाय। उसे समान धर्म अलंकार कहते हैं।

जैसे की –

पीपर पात सरिस मन डोला।
पीपल के पत्ते के समान मन कांपने लगा।

प्रतीप अलंकार

जहां पर किसी प्रसिद्ध उपमान को उपमेय बना दिया जाता है। मतलब की किसी प्रसिद्ध वस्तु की तुलना एक सामान्य वस्तु या प्रतीक से की जाती है।

जैसे की – सूर्य सा तेज है।

यहां तेज(उपमेय) जैसी की तुलना सूर्य(उपमान) से की जा रही है।

संदेह अलंकार

जहां किसी वस्तु (उपमेय) में उसी तरह की किसी अन्य वस्तु (उपमान) का संदेह हो। वहां संदेह अलंकार अलंकार का उपयोग हुआ होता है।

जैसे की

सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
नारी की ही सारी है कि सारी की ही नारी है।।

यहां नारी और सारी में संदेह होने के कारण संदेह अलंकार है।

उत्प्रेक्षा अलंकार

जहां उपमेय में उपमान की संभावना की जाती है। अर्थात किसी एक वस्तु को दूसरी वस्तु जैसी होने की संभावना प्रकट की जाती है, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जहां उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग होता है। वहां कुछ शब्द अवश्य आते हैं। जैसे- जनु, जानो, जानहुँ, मनु, मानो, मानहुँ वगेरा।

उदाहरण

सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात।
मनहु नीलमणि शैल पर, आतप परयो प्रभात।।

रूपक अलंकार

रूपक अलंकार में उपमेय और उपमान में भेदरहित आरोप किया जाता है। अर्थात दो वस्तुओं को एक ही मान लिया जाता है।

जैसे की –

चरण कमल बंदउ हरि राई।

अतिशयोक्ति अलंकार

जहां लोक सीमा का उल्लंघन करके किसी वस्तु का वर्णन या प्रसंशा बहुत बढ़ा-चढ़ा कर किया जाता है। वहां अतिशयोक्ति अलंकार का उपयोग हुआ होता है।

उदाहरण

हनूमान की पूंछ में, लगन न पाई आग।
सारी लंका जल गई, गए निशाचर भाग।।

उल्लेख अलंकार

जहां एक वस्तु का गुण, विषय, भावना के अनुसार अनेक प्रकार से या अलग अलग वर्णन किया जाय। वहां उल्लेख अलंकार का उपयोग हुआ होता है।

उदाहरण-

जानति सौति अनीति है, जानति सखी सुनीति।
गुरुजन जानत लाज है, प्रीतम जानत प्रीति।।

जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।
देखहिं भूप महा रनधीरा। मनहुँ वीर रस धरे शरीरा।।
डरे कुटिल नृप प्रभुहिं निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी।।

भ्रांतिमान अलंकार

जहाँ एक जैसी होने के कारण किसी वस्तु को कुछ और ही समझ लिया जाय। वहां भ्रांतिमान अलंकार का उपयोग हुआ होता है।

जैसे की

मुन्ना तब मम्मी के सिर पर देख-देख दो चोटी।
भाग उठा भय मानकर सर पर सांपिन लोटी।।

दृष्टांत अलंकार

जहां उपमेय एवं उपमान में बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव हो। अर्थात जहां दो वस्तुएं गुण धर्म में एक समान हो। एक के वर्णन में दूसरे का उदाहरण प्रस्तुत किया जा सके। वहां दृष्टांत अलंकार का उपयोग हुआ होता है।

उदाहरण

सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुधातु सोहाई।।

व्यतिरेक अलंकार

जहां उपमेय में उपमान की अपेक्षा कुछ अधिक विशेषता दिखाई जाय। वहां व्यतिरेक अलंकार का उपयोग हुआ होता है।

उदाहरण

चंद्र सकलंक, मुख निष्कलंक, दोनों में समता कैसी?

यहां उपमेय मुख को उपमान चंद्र की अपेक्षा श्रेष्ठ बताया गया है।

अन्योक्ति अलंकार

जहां अप्रस्तुत (जो उपस्थित न हों) वस्तुओं के माध्यम से प्रस्तुत वस्तुओं का वर्णन किया जाय। वहां अन्योक्ति अलंकार का उपयोग होता है।

जैसे की

नहिं पराग, नहिं मधुर मधु, नहिं विकास एहि काल।
अली कली ही सों बिन्ध्यो, आगे कौन हवाल।

यहां भ्रमर और कली का वर्णन करने के लिए अप्रस्तुत पराग और मधु का सहारा लिया गया है।

काव्यलिंग अलंकार

जहां किसी बात को कारण सहित बताया जाय। अथवा उसका युक्तिपूर्वक समर्थन किया जाय। वहां काव्यलिंग अलंकार का उपयोग हुआ होता है। इसकी विशेषता यह है कि अर्थ बताते समय इसमें क्योंकि, इसलिए, चूंकि, कारण आदि शब्दों का प्रयोग होता है।

उदाहरण

कनक कनक से सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय नर, या पाए बौराय।।

सोना धतूरे की अपेक्षा सौ गुना ज्यादा मादक होता है। क्योंकि धतूरा खाकर आदमी पागल होता है। जबकि सोना पाते ही आदमी पागल हो जाता है।

सारांश

अलंकार का समानर्थी शब्द आभूषण होता है। जिसे हम गहना कहते हैं। जिस तरह आभूषण पहनने से हमारी सुंदरता बढ़ती है उसी तरह अलंकार से कविता यानि काव्य रचना की सुंदरता बढ़ती है। तो दोस्तों अलंकार किसे कहते हैं alankar kise kahate hain और अलंकार के कितने भेद होते हैं ये आप जरूर समज गए होंगे।

यह भी पढ़िए

Leave a Comment