वीर रस के उदाहरण 20 Veer Ras Ke Udaharan
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Veer Ras Ke Udaharan
Veer Ras Ke Udaharan : हेलो, दोस्तों नमस्कार हिंदी बाराखड़ी डॉट कॉम पे आपका स्वागत हैं। वीर रस के उदाहरण के माध्यम से आप वीर रस को अच्छे से समज सकेंगे।
वीर रस के उदाहरण जानने से पहले आपको रस के बारेमे जानना जरुरी है। जो आप निचे दी गई लिंक से जान सकते हैं।
वीर रस के उदाहरण
सौमित्रि से घननाद का रव अल्प भी न सहा गया।
(1)
निज शत्रु को देखे विना, उनसे तनिक न रहा गया।
रघुवीर से आदेश ले युद्धार्थ वे सजने लगे ।
रणवाद्य भी निर्घाष करके धूम से बजने लगे ।
निकसत म्यान तें मयूखैं प्रलैभानु कैसी,
(2)
फारैं तमतोम से गयंदन के जाल कों।
फहरी ध्वजा, फड़की भुजा, बलिदान की ज्वाला उठी।
(3)
निज जन्मभू के मान में, चढ़ मुण्ड की माला उठी।
सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं
(4)
कौतता है कुण्डली मारे समय का व्याल
मेरी बाँह में मारुत, गरुण, गजराज का बल है.
लागति लपटि कंठ बैरिन के नागिनी सी,
(5)
रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडन के माल कों
लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,
(6)
कहाँ लौं बखान करों तेरी कलवार कों
क्रुद्ध दशानन बीस भुजानि सो लै कपि रिद्द अनी सर बट्ठत
(7)
लच्छन तच्छन रक्त किये, दृग लच्छ विपच्छन के सिर कट्टत
प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
(8)
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल कों.
बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी
(9)
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.
बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी ।
(10)
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.
भामिनि देहुँ सब लोक तज्यौ हठ मोरे यहै मन भाई।
(11)
लोक चतुर्दश की सुख सम्पति लागत विप्र बिना दुःखदाई
जाइ बसौं उनके गृह में करिहौं द्विज दम्पति की सेवकाई।
तौ मनमाहि रुचै न रुचै सो रुचै हमैं तो वह ठौर सदाई ।
लेकिन अब मेरी धरती पर जुल्म न होंगे
(12)
और किसी अबला पर अत्याचार न होगा।
अब नीलाम न होगी निर्धनता हाटों में,
कोई आँख दीनता से बीमार न होगी.
फिरे द्रौपदी बिना वसह, परवाह नहीं है।
(13)
धन वैभव सुत राजपाट की चाह नहीं है ।।
पहले पाण्डव और युधिष्ठिर मिट जायेंगे।
तदन्तर ही दीप धर्म के बुझ पायेंगे ।।
साजि चतुरंग सैन अंग उमंग धारि
(14)
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है।
भूषन भनत नाद बिहद नगारन के
नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं॥
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
(15)
हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे,
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो।
सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानों मुझे,
(16)
यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे।
है और कि तो बात क्या, गर्व मैं करता नही,
मामा तथा निज तात से भी युद्ध में डरता नही.
बातन बातन बतबढ़ होइगै, औ बातन माँ बाढ़ी रार,
(17)
दुनहू दल मा हल्ला होइगा दुनहू खैंच लई तलवार।
पैदल के संग पैदल भिरिगे औ असवारन ते असवार,
खट-खट खट-खट टेगा बोलै, बोलै छपक छपक तरवार.
जय के दृढ विश्वासयुक्त थे दीप्तिमान जिनके मुखमंडल
(18)
पर्वत को भी खंड-खंड कर रजकण कर देने को चंचल
फड़क रहे थे अतिप्रचंड भुजदंड शत्रुमर्दन को विह्वल
ग्राम ग्राम से निकल-निकल कर ऐसे युवक चले दल के दल
ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
(19)
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये
सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं,
(20)
कौतता है कुण्डली मारे समय का व्याल
मेरी बाँह में मारुत, गरुण, गजराज का बल है
Conclusion
ऊपर दिए गए सभी उदाहरण वीर रस के है। व्याकरण में महत्वपूर्ण टॉपिक आप इस वेबसाइट के माध्यम से धढूंढ सकते हैं अगर आपके पास Veer Ras Ke Udaharan है तो कमेंट में लिख सकते हैं।
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