हास्य रस की परिभाषा – अवयव और हास्य रस के उदाहरण

Hasya Ras Ki Paribhasha

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hasya ras ki paribhasha

हास्य रस की परिभाषा

जब हास नामक स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव से संयोग होता है तो इससे हास्य रस की उत्पत्ति होती है।

हास्य रस की परिभाषा- हास्य रस का स्थायी भाव हास् है। किसी असाधारण व्यक्ति की असाधारण आकृति, विचित्र वेशभूषा, अनोखी बातें सुनने या देखने से मन मे उत्पन्न स्थायी भाव को ‘हास’ कहते है और जब हास स्थायी भाव का संयोग विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव से होता है, तो हास्य रस  की उत्पत्ति होती है और इस उत्पत्ति को हास्य रस कहते हैं। समजे?

हास्य रस के अवयव

  • स्थायी भाव-  हास्
  • आलंबन-  विचित्र वेशभूषा, आकर चेष्ठा एंव आकृति
  • उद्दीपन-  आलम्बन की अनोखि, चेष्ठाएँ, बातचीत वगेरा
  • अनुभव-  आँखो का मिचमीचना, अट्टहास करना तथा आश्रय की मुस्कान
  • संचारी भाव-  निद्रा, आलस्य, उत्सुकता ,भ्रम, हर्ष एवं कम्पन वगेरा ।

हास्य रस के उदाहरण

उदाहरण 1

हाथी जैसा देह, गैंडे जैसी चाल

तरबूजे सी खोपड़ी,खरबूजे सी गाल

उदाहरण 2

मतहिं पितहिं उरिन भये नीके।

गुरु ऋण रहा सोच बड़ जी के

उदाहरण 3

बुरे समय को देखकर गंजे तू क्यों रोय।

किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय

उदाहरण 4

नाना वाहन नाना वेषा।

बिहसे सिव समाज निज देखा

कोउ मुख-हीन बिपुल मुख काहू।

बिन पद-कर कोउ बहु पद-बाहु।।

उदहारण 5

विंध्य के वासी उदासी तपोव्रतधारी माह बिनु नारी दुखारे गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिवृन्द सुखारे।

ह्वै है सिला सब चंद्रमुखी, परसे पड़ मंजूल कंज तिहारे कीन्ही भली रघुनायक जू जो कृपा करी कानन को पगु धारे।।

सारांश

भरतमुनि ने कहा है कि दूसरों चेष्ठा से हास उत्पन्न होता है तथा यह हास, स्मिति एवं अतिहसित के द्वारा व्यंजित होता है, “स्मितहासातिहसितैरभिनेय:”। जब हास नामक स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव से संयोग होता है तो इससे हास्य रस की उत्पत्ति होती है। तो दोस्तों आप हास्य रस की परिभाषा hasya ras ki paribhasha को अच्छे से समज गए होंगे।

धन्यवाद

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