Ras Ke Bhed उदाहरण और परिभाषा सहित पूरी जानकारी

Ras Ke Bhed

Ras ke bhed – हेलो दोस्तों, हिंदी बाराखड़ी डॉट कॉम पे आपका स्वागत है। आज हम इस पोस्ट के माध्यम से रस के भेद के बारेमे जानने वाले हैं। रस व्याकरण की पूरी जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।

Ras ke bhed

रस के भेद जानने से पहले रस क्या होता हैं उसकी परिभाषा जान लीजिये।

रस का सीधा सबंध काव्यों के साथ हैं। काव्य का श्रृंगार ही रस हैं। रस का अर्थ आनंद होता हैं। तो इसकी परिभाषा कुछ इस तरह हैं।

रस की परिभाषा : काव्य को पढ़ने में या सुनने में जिस आनंद की अनुभूति होती हैं उसे रस कहा जाता हैं।

वैसे तो रस की परिभाषा अलग अलग दी गई है। जैसे की भरतमुनि द्वारा, आचार्य धनंजय वगेरा। चलो अब रस के भेद के बारेमे जानते हैं।

रस के भेद

रस के मुख्य 11 भेद होते हैं जो निचे मुजब हैं।

  1. वीभत्स रस
  2. शृंगार रस
  3. करुण रस
  4. हास्य रस
  5. वीर रस
  6. रौद्र रस
  7. भयानक रस
  8. अद्भुत रस
  9. शांत रस
  10. वात्सल्य रस
  11. भक्ति रस

वीभत्स रस

घृणा के भाव को प्रकट करने वाला रास वीभत्स रस हैं। विद्वानों के अनुसार जब घृणा का भाव अपने अनुरूप आलंबन, उद्दीपन एवं संचारी भाव के सहयोग से आस्वाद का रूप धारण कर लेता है तो उसे वीभत्स रस कहते हैं।

मतलब की किसी भी काव्य में घृणा का भाव प्रकट होता हो तो वहा वीभत्स रस होता है।

झुकना, मुंह फेरना, आंखें मूंद लेना इसके अनुभाव हैं। जबकि इसके अंतर्गत मोह, अपस्मार, आवेद, व्याधि, मरण, मूर्छा आदि संचारी भाव है।

विभित्स रस के उदाहरण निचे मुजब हैं।

आँखें निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते।
शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते।
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे।
खा माँस चाट लेते थे, चटनी सम बहते बेटे।

पढ़े महत्वपूर्ण व्याकरण मुद्दा – उपसर्ग किसे कहते हैं

शृंगार रस

सभी रसो में श्रृंगार रस को महत्वपूर्ण रस माना गया हैं।

विद्वानों के मतानुसार श्रृंगार रस की उत्पत्ति ‘श्रृंग + आर‘ से हुई है। इसमें श्रृंग का अर्थ है – काम की वृद्धि। तथा ‘आर’ का अर्थ है प्राप्तिअर्थात कामवासना की वृद्धि एवं प्राप्ति ही श्रृंगार है इसका स्थाई भाव ‘रति’ है।

सहृदय के हृदय में संस्कार रुप में या जन्मजात रूप में विद्यमान रति नामक स्थाई भाव अपने प्रतिकूल विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर जब आशीर्वाद योग्य बन जाता है तब वह श्रृंगारमें परिणत होता हैं।

परिभाषा – नायक नायिका के सौंदर्य तथा प्रेम संबंधी वर्णन को श्रंगार रस कहते हैं।

श्रृंगार रस के दो प्रकार होते हैं।

  1. संयोग श्रृंगार रस
  2. वियोग श्रृंगार रस

1- संयोग श्रृंगार – जहां नायक-नायिका के मिलन का वर्णन होता है वहां सहयोग श्रृंगार रस होता है |

संयोग रस के उदहारण

‘कहत , नटत , रीझत , खीझत , मिलत , खिलत , लजियात।

भरै भौन में करत है , नैनन ही सों बाता।’

2 – वियोग श्रृंगार – जहां नायक-नायिका की वियोगावस्था (विरह या दुःख ) का वर्णन होता है वहां वियोग श्रृंगार रस होता है |

उदहारण

“मधुबन तुम कत रहत हरे , विरह वियोग श्याम – सुंदर के ठाड़े क्यों न जरें।”

करुण रस

जहां किसी हानि के कारण शोक भाव उपस्थित होता है, तो वहां पर करुण रस उपस्थित होता है।

मतलब की किसी भी काव्य में करुणा का भाव हो तो वहा करूण रस होता है

परिभाषा – किसी प्रिय व्यक्ति के चिन्ह बिरहा से उत्पन्न होने वाली शोक अवस्था के परिपाक को करुण रस कहते हैं

करुण ही एकमात्र ऐसा रस है जिससे सहृदय पाठक सर्वाधिक संबंध स्थापित कर पाता है।

करुण रस के अनुभाव – प्रलाप करना, रोना, जमीन पर गिरना, प्रलाप करना, छाती पीटना, आंसू बहाना, छटपटाना वगेरा करुण रस के अनुभाव है।

करुण रस के उदाहरण

“अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ।
खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल॥
हाय रुक गया यहीं संसार, बना सिन्दूर अनल अंगार।
वातहत लतिका यह सुकुमार, पड़ी है छिन्नाधार! “

हास्य रस

जब हास नामक स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव से संयोग होता है तो इससे हास्य रस की उत्पत्ति होती है।

हास्य रस का स्थायी भाव हास् है।

हास्य रस की परिभाषा– किसी असाधारण व्यक्ति की असाधारण आकृति, विचित्र वेशभूषा, अनोखी बातें सुनने या देखने से मन मे उत्पन्न स्थायी भाव को ‘हास’ कहते है और जब हास स्थायी भाव का संयोग विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव से होता है, तो हास्य रस की उत्पत्ति होती है और इस उत्पत्ति को हास्य रस कहते हैं। समजे?

उदाहरण

हाथी जैसा देह, गैंडे जैसी चाल

तरबूजे सी खोपड़ी,खरबूजे सी गाल

वीर रस

वीर रस का स्थायी भाव उत्साह हैं। वीर रस की परिभाषा निचे मुजब हैं।

उत्साह नामक स्थाई भाव जब विभावादी के संयोग से परिपक्व होकर रस रूप में परिणत होता है तब वही वीर रस कहते हैं

अगर आसान भाषा में परिभाषा दे तो – किसी भी वाक्य में वीरता का वर्णन होता हैं तो वहा वीर रस का प्रयोग होता हैं।

विद्वानों के अनुसार वीर रस के चार भेद हैं।

  1. युद्धवीर
  2. धर्मवीर
  3. दानवीर
  4. दयावीर

वीर रस के उदाहरण

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। सामने पहाड़ हो किसी की दहाड़ हो | तुम कभी रूको नहीं तुम कभी झुको नहीं।

रौद्र रस

रौंद्र रस के नाम से ही आप समज गए होंगे की इसमें कैसा भाव होता होगा।

रौंद्र रस का स्थायी भाव क्रोध हैं।

रौद्र रस की परिभाषा – किसी व्यक्ति के द्वारा क्रोध में किए गए अपमान वगेरा से उत्पन्न क्रोध के भाव को रौद्र रस कहा जाता हैं। मतलब की किसी काव्य में किसी व्यक्ति के क्रोध का वर्णन होता हैं तो वह रौंद्र रस होता है।

उदहारण

श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब सील अपना भूलकर करताल युगल करने लगे।

भयानक रस

भयानक रस में भय छुपा हुआ हैं। मतलब की किसी काव्य में भय के बारेमे वर्णन हो तो वहा भयानक रस होता हैं।

अगर इस रस की परिभाषा आसान शब्दों में दे तो – किसी भयानक दृश्य को देखने से उत्पन्न भय की अवस्था को भयानक रस कहा जाता हैं।

भय रस का आलंबन भयावह, जंगली जानवर अथवा बलवान शत्रु है।

उदाहरण

जैसे उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल काल के जालों सी। चली आ रही फेंन उगलती, फेंन फैलाएं व्यालो सी।

अद्भुत रस

अद्भुत रस में स्थायी भाव आश्चर्य होता हैं।

किसी वाक्य को पढ़कर या सुनकर आश्चर्य उतपन्न होता हो तो वह अद्भुत रस होता हैं

परिभाषा – आश्चर्यजनक वर्णन के द्वारा उत्पन्न निभावो की अवस्था को अद्भुत रस कहा जाता हैं।

उदाहरण –

अखिल भुवन चर अचर सब , हरिमुख में लखि मात।
चकित भई गदगद वचन विकसित दृग पुलकात।

शांत रस

शांत रस का स्थायी भाव निर्भव होता हैं।

किसी भी काव्य को पढ़कर बहुत शांती उतपन्न होती हो वह शांत रस होता हैं।

उदाहरण –

पायो नाम चारु चिंतामनि उर करतें न खसैहौं।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौ।

वात्सल्य रस

वात्सल्य का स्थायी भाव वात्सलयता हैं।

माता – पिता और संतान के प्रेम भाव को प्रकट करने वाला रस वात्सल्य रस है।

उदाहरण

बाल दास सुख निरखि जसोदा , पुनि – पुनि नन्द बुलवाती।
अँचरा तर लै ढाकी सूर के प्रभु को दूध पियावति।।

भक्ति रस

भक्ति रस का स्थायी भाव दास्य हैं।

किसी काव्य या गद्य में भक्ति का भाव हो तो वह भक्ति रस होता हैं। उसका उदाहरण निचे मुजब हैं।

उदाहरण –

राम तुम्हारे इसी धाम में

नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ।

तो यहां पे दोस्तों ras ke bhed पूर्ण होते हैं।

Conclusion

रस व्याकरण का महत्वपूर्ण मुद्दा है। जो आपको सीखना जरुरी हैं। यहां पे मेने रस के भेद जो ग्यारह है उसके बारेमे सम्पूर्ण विवरण के साथ समझाया हैं। सभी रस के लिए अलग अलग उदाहरण भी है जो आप आसानी से पढ़ सकते हैं।

Ras ke bhed के बारेमे आप बहुत अच्छे से समज गए होंगे।

धन्यवाद

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